Wednesday, 19 December 2012

UC SSA


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Monday, 17 December 2012

NIOS Results for October 2012 Examination


Secondary: Results for October 2012 Exams


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Sr. Secondary: Results for October 2012 Exams

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FORM OF APPLICATION FOR VERIFICATION OF
SECONDARY/SR. SECONDARY MARKS

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Thursday, 13 December 2012

अध्ययनका महत्त्व बच्चोंके मनपर कैसे अंकित करें ?

बच्चोंको सदा शास्त्रज्ञ, उद्योगपति, कुशाग्रबुद्धिके प्रसिद्ध व्यक्तित्वकी उत्तम कहानियां सुनाएं तथा बडे पदको प्राप्त करनेके लिए उन व्यक्तियोंको क्या परिश्रम करने पडे, कितना अध्ययन करना पडा, इसकी जानकारी बच्चोंके मनपर प्रभावकारी रूपसे अंकित हो, यह देखें । कठोर परिश्रमका कोई पर्याय नहीं है । इस विषयमें उनके मनमें कोई संदेह न रहे ।
         बच्चोंके मनपर यह अंकित करें कि, स्वकर्मके फल उन्हें भोगने पडते हैं । अध्ययन करनेसे उनका आगे सर्वांगीण विकास होगा । कठोर, प्रामाणिक परिश्रम करनेवालेके पीछे भगवान सदैव खडे रहते हैं, यह बच्चोंके मनपर अंकित करना चाहिए ।
 

अध्ययनको सरल बनानेके लिए उपाय बताने हेतु
अलग-अलग साधनोंकी सहायता लें !

         बच्चा जितना छोटा हो उतनी ही अलग-अलग कहानियां अथवा उचित उदाहरण देकर विषयको सरल बनाकर अध्ययनमें रुचि निर्माण करना महत्त्वपूर्ण होता है । १० से १२ वर्षके बच्चोंमें अमूर्त कल्पनका विकास नहीं हुआ होता; और इस कारण बीजगणितके `क्ष' का निश्चित अर्थ क्या है यह वे समझ नहीं पाते ।
         २-४ गोटियां पेन्सिल अथवा लकडीका उपयोग करना महत्त्वपूर्ण होता है । बीच-बीचमें बच्चको विषय समझमें आ रहा है अथवा नहीं यह भी देखें । गणित, विज्ञान जैसे विषयाकी नींव पक्का करना पालकोंके लिए संभव न हो, तो किसी अनुभवी शिक्षककी सहायता लेना उचित होगा ।
         यदि बच्चा अनुत्तीर्ण हो गया हो, तो उसे उच्चवर्गमें प्रोन्नत करनेका प्रयत्न न करें; क्योंकि यदि उसके अध्ययन की नींव ही कच्ची रह गई हो, तो उच्च वर्गमें प्रोन्नत होनेपर वह अध्ययनमें पिछड जाएगा । यदि बच्चा अनुत्तीर्ण हो गया हो, तो उसपर क्रोध न करें । बार-बार क्रोध करनेसे उसका ध्यान और अल्प हो जाएगा और वह अध्ययन करना छोड देगा । उससे सहानुभूतिपूर्वक बात कर उसके अनुत्तीर्ण होनेके कारणोंको समझकर उसमें सुधार कर सकते हैं ।
 

घरका वातावरण अध्ययन हेतु पूरक रखें !

         अच्छे अध्ययनके लिए घरका वातावरण स्नेहपूर्ण, विश्वासनीय, शांत तथा अध्ययन हेतु प्रेरक होना चाहिए । प्राचीनकालमें बालकोंको विद्या प्राप्त करनेके लिए आश्रममें भेजा जाता था तथा ये आश्रम गांवसे दूर, एकांतमें, शांत, वातावरणमें होते थे । आजकी शिक्षा-प्रणालीमें अभिभावकोंका उत्तरदायित्व बहुत बढ गया है । अतः घरका वातावरण शांत, स्नेहयुक्त तथा अध्ययन हेतु प्रेरक हो, इसके प्रति अभिभावकोंको जागरूक होना चाहिए ।
         बालक यदि अध्ययन कर रहा हो, तो उस समय रेडियो अथवा दूरदर्शन न चलाएं । बच्चोंके सामने मां-पिता आपसमें न झगडें, वैसे ही घरके काम छोडकर अथवा रसोई बनाते-बनाते मार्गमें जा रही बारात देखने न जाएं क्योंकि आपका बच्चा भी आपके पीछे-पीछे अध्ययन छोडकर बारात देखनेके लिए भागेगा । यदि आपको स्वयं ही बारात देखनेका मोह छोडना नहीं आता, तो आप अपने बच्चेसे कैसे अपेक्षा करते हैं कि उसे बारातका मोह छोडकर अध्ययन करना चाहिए । अर्थात बच्चेका अध्ययन अच्छा हो तो घरका वातावरण भी आश्रमके समान ही होना चाहिए ।
         अच्छे अध्ययन हेतु बच्चेसे बीच-बीचमें थोडा समय निकालकर उसे कुछ सिखाएं । यदि बच्चा महाविद्यालयमें अध्ययन करता है तथा उसके विषयोंका ज्ञान आपको नहीं है, तो कम-से-कम रात्रिमें बच्चा पढाई करते समय गीता, ज्ञानेश्वरी, संतोंके चरित्र इत्यादिका वाचन करें तथा स्वतः टिप्पणियां लिखें । आपका सान्निध्य उसे मिलेगा तथा मां-पिताजी भी अध्ययन कर रहे हैं, इसका अनुभव उन्हें होगा । एक बात पक्की ध्यानमें रखें, कि बच्चे अनुकरणप्रिय होते हैं ।
         एक परिच्छेद पढकर उसके महत्त्वपूर्ण बिंदु लिखनेकी आदत बच्चोंमें डालें तथा उसके पश्चात संपूर्ण अनुच्छेदके संक्षिप्त मुख्य बिंदुओंको लिखकर रखें । साधारणतः एक विषयका अभ्यास सतत ४५ मिनटसे अधिक करना कठिन होता है । अतः बच्चोंको बीच-बीचमें ही थोडा विश्राम करने दें तथा विषयमें परिवर्तन करनेके लिए कहें ।
          केवल अधिक घंटेतक अभ्यास करना ही वास्तविक अभ्यास नहीं है । एकाग्रतासे ३-४ घंटे वाचन-मनन-चिंतन होगा, तभी वह वास्तविक अभ्यास है । कभी-कभी बच्चोंके प्रिय देवताओंके चित्र अध्ययनकी मेजपर रखनेसे बच्चोंमें आत्मविश्वास निर्माण होनेमें सहायता होती है । मन एकाग्र करनेके लिए ध्यान-धारणा भी बहुत उपयुक्त सिद्ध होती है ।